मै वहीं वक्त जीना चाहता हूं
मैं वही वक्त जीना चाहता हूं,
मैं अपनी कलम से फिर कुछ कहना चाहता हूं !
अब हाशिए पर रह कर नहीं जीना चाहता हूं,
उसी खुदमुख्तारी से फिर रहना चाहता हूं!
जहां को फिर एक नई समझ दिखाना चाहता हैं
सूखी रोशनाई से नहीं जज़्बो से किसी का दिल जीतना चाहता हूं!
मैं हाशिए पर अब और नहीं रहना चाहता हूं .....
मैं मुकद्दर के सहारे रह कर नहीं मरना चाहता हूं,,
मैं मेहनतकशो के हाथ में ,अपना हाथ देना चाहता हूं
मैं अपनी कलम से फिर कुछ कहना चाहता हूं .
मैं रूबरू होना चाहता हूं!
मैं सुरखरू नहीं होना चाहता हूं.
मैं फिर से कुछ लिखना चाहता हूं, मेरी वक्त से इल्तिजा हैं,
मैं उनही लम्हो को फिर से जीना चाहता हूं ,
मैं फिर उन्ही किताबों से मिलना चाहता हूं,
वक्त से फिर वही पन्ना मांगना चाहता हूं....
मै फिर से कुछ सोचना चाहता हूं,
फिर एक बार जुगनुओ के आगोश में जीना चाहता हूं!
वक्त के साथ किताबो का गुम हो जाना ,
अपने आप कलम की रोशनाई का जम जाना ,
मुद्ददतो बाद यूं ही किताबो का याद आना,
किताबगाहो की धूलभरी दरो दिवारो पर
हसरत से नजरे टिकाना...
वक्त से किताबो के लिए अब गिड़गिडाना.
इनही सब को किताबो से लिखना चाहता हूं,
मै फिर किताबो के साथ जीना चाहता हूं......
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