नए दौर के किस्से
लोग बताते हैं कि ! किसी जमाने में जब बड़के मामा ने गांव में अपना वर्चस्व स्थापित किया, तो अपने को चक्रवर्ती मनवाने के लिए खानदान के लोगों को सहभोज भी दिया। सहभोज बिल्कुल अनोखा था! खानदान के लोगों को चूंकि मामा को चक्रवर्ती होना तसलीम करना था, इसलिए इस सहभोज में पूरा खानदान आया और आगे से ये खानदान की इक परंपरा बन गई। साल में एक बार मामा सहभोज जरूर देते थे और हाँ कभी किसी वजह से अगर देर भी हो जाए तो रजवी शरीफ का मुर्गीवाला सहभोज खानदान वालों को जरूर देते जिसमें पूरा खानदान जम कर मुर्गे का चहला वाला सालन ,चावल खूब पीते। इस सहभोज का अंदाज़ बिल्कुल निराला था, खानदान के सभी लोग एक साथ एक सफ में बैठ जाते थे ताकि पूरे खानदान को अहसास ही न हो कि कौन छोटा है और कौन बड़ा! मामा के आंगन से लेकर पांडू नाना के अंगूर के नीचे सभी छोटे बड़े एक साथ सफ में बैठ जाते, फिर मामा अपने शाही अंदाज से बरामदे में तहमत चढ़ाकर, बनियान पहने हुए, टोंटी वाले लोटे से सालन भर कर खानदान के लोगों के प्लेट में उतारना शुरू कर देते। पूरा का पूरा खानदान सुबुड सुबुड कर सालन चावल का गीला कौर खाना शुरू कर देता था। कुछ एक तो इतना तेज खाते थे कि सालन उनकी कोहनी से तरतर टपकता रहता।
समय बदला बड़के मामा मनो मन मिट्टी के नीचे चले गए, खानदान के लोगों ने भी खूब तरक्की की खूब पैसा कमाया और तो अब काहे का कोई भौकाल और काहे के चक्रवर्ती ? कोई मानता भी नहीं लेकिन उनके घर की इज्जत बरकरार रही,भतीजे की शादी हुई तो सभी खानदान के अफ़राद ने शादी में शिरकत किया नए अफ़राद उसी तरह एक सफ में बैठे…..
बस फर्क इतना था तब जमीन पर दरी होती थी आज जमीन पर कुर्सियों की एक सफ लगी हुई थी इस बार सालन परोसने के लिए बड़के मामा की जगह बैरे खड़े थे लोटे की जगह क्वार्टर कटोरे थे………
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