खबर की होड़ में कुत्ता बने वनराज
खबर की होड़ में कुत्ता बने
वनराज
घटना बहराईच का कतर्नियाघाट के जंगलो की जहां बाढ के पानी से परेशान एक बाघ
नदी को तैरते फांदते अचानक एक बस्ती में दिन दहाडे आ धमका(खबर लिखने के स्टाइल में)।
घटना रोचक थी, और तकनीक के घोड़े पर सवार उन्मादी लोगो ने इस वाक्ये को अपने मोबाइल
कैमरे में कैद करने की किसी भी तरह की कसर
बाक़ी नही लगाई। जबकि शायद ही उन्हे पता हो कि ऐसा नही किया जाना चाहिए क्योकि
इससे इनके शिकार का खतरा बढ़ जाता है। बात जब पत्रकारो को पता चली तो हसब दस्तूर
खबर बनाने की होड़ लग गई, और आज की दुनिया में खबर में मसाले ना हो तो खबर जचती
नही, ऐसा ही मान लिया गया है। तो खवरनवीस(पत्रकार) लग गये इसको कवर करने की होड में,
हांलाकि इस तरह की फील्ड में जो मौजूदा पत्रकार होता हे, वह हकीकत में पत्रकार नही
होता बल्कि जिले पर बैठे असली पत्रकार का एक धुंधला चेहरा होता है, जिसे ही पढाई
लिखाई की भाषा में ही रिपोर्टर कहा जाता है, जर्नालिस्ट नही, क्योकि इसका काम
सिर्फ रिपोर्ट करना होता है, चूंकि इसका आका या मालिक जिले पर होता है तो अचानक इतनी
दूर आना उसके बस की बात नही होती, और शायद ये भी हो सकता है कि वह किसी ठेकेदारी
पट्टेदारी के सिलसिले में किसी सरकारी दफ्तर में जनसम्पर्क साध रहा हो ऐसी व्यस्तता
के चलते और खबर की मारामारी में उसे फील्ड रिपोर्टर की रिपोर्ट पर ही निर्भर रहना
पड़ता है।ऐसी ऊंहापोह औऱ भागादौड़ी की स्थिति में वह फील्ड पत्रकार खबर की गंभीरती को भी भुला बैठा। उसने यह नही सोचा कि बाघ हमारे देश का राष्ट्रीय पशु है और इसकी गरिमा हमें उसी तरह बनाये रखनी है जैसे अन्य राष्ट्रीय धरोहरो की। सही है, आप खबर लिखे उसे रोचक बनाये, लेकिन किसी के अधिकारो का हनन ना करे और ना उसकी खिल्ली उड़ाये, चाहे वह आदमी हो या फिर जानवर।
इसी खबर को दूसरे रिपोर्टर ने
महज एक रिपोर्ट के तौर पर पेश किया, जिसमें उसने बाघो की आवास की समस्या को पूरे तरह से
नजरअंदाज करके केवल दहशत पर फोकस किया और जिन लोगो ने बाघो का अधिकारो पर डाका डाल
रखा है, उनको निरीह ग्रामीण बना कर पेश कर दिया जबकि कतर्निया का एक बड़ा इलाका
अतिक्रमित है और सरकारी लचरता का मारा हुआ भी है, दहशत बनाने का एक वजह यह भी हो
सकती है कि शहर में बैठे लोग इस खबर से डर जाए, सिहर उठे और डर डर कर इस खबर का रोमांच लें।
हकीकत है कि खबर को खबर ही
रहने तो इसे और कोई एंगिल ना दो, खास करके जब संवेदनशील मुद्दा जो प्रकृत संरक्षण
से जुडा हो। अगर खबर ही बनानी है,तो भईया प्रशिक्षण ले लो कुछ पढ लिख भी लो कि
सिर्फ फोन पर बोल कर सनसनी पैदा कर देने से समाज का भला हो जायेगा।
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