आरक्षण
आरक्षण
सरला सो कर उठी ही थी जैसे ही सीढीयां उतर रही थी। दलान में पापा तेज तेज बोले चले जा रहे थे। गुस्से में पापा बड़बड़ायें
जा रहे थे, “सत्यानाश कर रखा है
इस देश का आरक्षण ने” सब कुछ तो हम लोगो से ले ही लिया, अब रही सही इन नौकरियो में भी रोज कुछ नया
आरक्षण लागू कर दिया जा रहा है। सरकार क्या हो गयी! हम लोगो की तो कोई फिक्र
ही नही। नीचे उतर कर बाल सवारते सरला ने
पूछ लिया, क्या हुआ पापा? अरे आईएएस का रिजल्ट आया है, और आरक्षण वाले ने फिर बाजी मार ली, वही तुम्हारा सहपाठी
टॉप कर गया। कौन राहुल! सरला ने अपनी खुशी को छुपाते हुए पूछा? हां हां वही राहुल आरक्षण के बदौलत बाजी मार ले
गया नही तो ....नही पापा, राहुल ऐसा नही वह शुरू से पढ़ने में तेज है… हां तो हमारे बच्चे तो
निखट्टू है। और तुम काहे इतना तरफदारी कर रही हो यही आरक्षण ही है जो तुम्हारे हक को भी मारे है नही तो
तुम्हारा भी बीएड में इस साल दाखिला हो जाता। कही मिल जाती कोई नौकरी तो अच्छा भला
लड़का तो कम से कम मिल जाता .अब एक साल और इंतेजार करू.... धीरे धीरे रिटायरमेंट
के पैसे भी खत्म हो रहे है... पेंशन इतनी नही मिलती कि तीन तीन लड़कियो के विवाह
के लिए दहेज इकट्ठा कर पाऊं और तुम्हार वह नालायक भाई, शादी के बाद से आज तक मुंह
नही दिखाया! अब तो फोन भी नही
उठाता..सरला सुबह सुबह इतना लेक्चर सुनने के मूड नही थी... बस चुपचाप सर झुकायें
पैर के अगूंठे से आंगन की मिट्टी खरोंच रही थी, पिता जी लेक्चर दे कर दलान से निकल
गये और मां ने रसोई से आवाज लगाई, अब जा
कर नहा ले तेरी बहनें कब का स्कूल चली गई
और अब तो तेरे पास कोई काम नहीरह गया। और क्या कह रहे थे तेरे बाबू जी? क्या किया है राहुल ने?इतना सुनते ही सरला जैसे
गहरी तन्द्रा से जागी और तेजी से घर के बाहर जाने लगी। मां ने पूछा कहां चल दी
इतनी सुबह सुबह,बासी मुंह घर से? चौखट से बाहर निकलते हुए उसने एक रव में कहा “राहुल के पास आरक्षण का लाभ
लेने”।
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