वक्त के साथ मीडिया और मटुंगनाथ

वक्त के साथ मीडिया और मटुंगनाथ

कही से इक धुंधली सी खबर आई है कि, जूली मटुंगनाथ को छोड कर चली गई है। वही बिहार वाले प्रोफेसर साहब जिनका कई वर्षो पहले अपना छात्रा से प्रेम प्रसंग परवान चढा था और जिसकी मीडिय़ा में इसकी खूब चर्चा हुई थी। इस प्रेम प्रंसंग की भनक जब प्रोफेसर साहब की असली पत्नी को लगी तो उन्होने बाकायदा मीडिया और कैमरा के साथ घात लगा कर प्रोफेसर साहब को रंगे हाथो पकड़ लिया था। फिर मीडिया के सामने खूब ड्रामा हुआ। उस दौर का मीडिया उस वक्त अपनी जगह तलाश कर रहा था और इस तरह की खबरें उस वक्त अनोखी हुआ करती थी ऐसे में मटुंगनाथ प्रकरण को मीडिया ने खूब चटकारा ले लेकर बयान किया। खबर को हर एंगिल देने की कोशिश की गई और रंगे हाथो पकडे जाने से लेकर थाने तक प्रोफेसर साहब को मय पत्नी और प्रेमिका सहित फालो किया गया। इसी दौरान प्रोफेसर साहब की गरिमा को देखते हुए पुलिस अपने रौब को दरकिनार करके मामले को निपटाने की कोशिश में लगी ही हुई थी कि थाने में पड़ी मेज़ को दोनो ओर बैठी प्रोफेसर साहब की पत्नी और प्रेमिका में ‘तू तू मैं मै’ शुरू हो गई। जूली जो कि प्रोफेसर साहब की कथित प्रेमिका थी और उनको प्रोफेसर साहब असली पत्नी ने अपने पति के साथ रंगे हाथो पकडा था। जूली लगातार प्रोफेसर साहब के साथ अपने संबंधो को जायज ठहराने की कोशिश में लगी हुई थी उसी वक्त उनकी पत्नी को ताव आ गया और उन्होने शुद्द भोजपुरी में जूली को गरियातो हुए झट से उसका बाल पकड़ कर उसको पटक दिया दूसरी तरफ प्रोफेसर साहब बड़े ही रोचक अंदाज में वहां खड़े लोगो को भक्तिकाल के कवियो की प्रेम रस की कविताओ से अपने और जूली के संबंधो के सही होने की दुहाई दे रहे थे। पत्नी और प्रेमिका में जो झोटा युद्द शुरू हुआ उससे गांव की पुरानी परंपरा याद आ गई जो विलुप्त होने के कगार पर खड़ी है। मीडिया ने संभवता पहली बार इस तरह के रोचक झोटा युद्द का प्रदर्शन  दिखाया  था और इसके लिए मीडिया को काफी तारीफ भी मिली थी, मतलब उनकी टीआरपी  भी बढ़ गई।
थाने में  चलने वाले इस ड्रामें में पटना शहर के कालेज के कुछ लौंडे भी चक्कलस लेने पहुंच गये, माजरे को समझ कर किसी  चूहिलबाज टाइप के लौंडे ने प्रोफेसर साहब के चेहरे के ऊपर स्य़ाही डाल दी। (यह वह दौर नही था जब राजनीतिक रूप से स्याही फेकने की परंपरा नही हुआ करता थी)। प्रोफेसर साहब ने इस के बाद भी आपा नही खोया और बड़े तार्किक ढंग से शांत रहते हुए जायसी और दूसरे कवियो की प्रेमाधारा की कविताओ से अपने प्रसंग को साबित करने में जुटे रहे। इसी दौरान प्रोफेसर साहब से किसी पत्रकार ने भी पूछ लिया कि आखिर आपने अपने से इतनी छोटी उम्र की लड़की जोकि आपकी स्टूडेंट भी रही कैसे मोहित हो गय़े क्या कारण रहा, तो उनकी पत्नी ने अपने उसी भोजपुरी लहजे में कहा “अर्रे ऊ और ई दोनो इक ठव पत्रिका निकालत रहे ही के लिए रातो दिन गुपचुप गुपचुप बतियाते थे वही से इनका नाटक सुरू हुआ’ । ये सब पत्रिका के आड़ में रमल फैलाइन रहा”। पत्रकार एकदम चुप्पी मार गया।
और ऐसी चुप्पी मारी कि अब जब मडुंगनाथ को जूली छोड़ कर चली गई तो भी कोई बडी खबर नही बनी जैसे कि उन दिनों बनी थी।
बहरहाल जूली के जाने के बाद अब भी मटुंगनाथ आशातीत है कि एक दिन जूली फिर उनसे आकर मिलेगी और इनही सब लफडो के बीच प्रोफेसर साहब की असली पत्नी ने कानून की डिग्री भी हासिल कर ली। प्रोफेसर साहब का मानना है कि जूली लम्बे समय तक उनको नही छोड सकती और एक दिनवह जरूर आयेगी, लेकिन इनसब के बीच अगर कोई चीज गायब हे तो उस दौर की मीडिया जिसने इस बार प्रोफेसर के वियोग को वैसा नही दिखया जैसा कि उनके मिलन को दिखाया गया था।

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