ZINDA DILI: khawab khawaish aur khabar

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आंखों आंखों रहे और कोई घर न हो !ख्वाब जैसा किसी का मुकद्दर न हो !क्या तमन्ना है रोशन तो सब हों मगर ,कोई मेरे चरागों से बढ़कर न हो !रौशनी है तो किस काम कि रौशनी ,आँख के पास जब कोई मंज़र न हो !क्या अजब आरज़ू घर के बूढों कि है,शाम हो तो कोई घर से बाहर न हो !

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