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जन्नत

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जन्नत जब से पुरैना  मामा खाड़ी देश से लौटे हैं अचानक ही उनके मिजाज़  बदल गए। पंचगाना नमाज़, सर पर टोपी, हर जुम्मे को खास तौर पर अतारूमी  के साथ कंधे पर लाल चेक का गमछा। मौलवी साहेब के साथ उठना बैठना, तबलीग की बाते फतवा के साथ फितना सब बातों पर बड़ी "गौर ओ फिक्र"।  यकीन ही नहीं होता, वहीं मामा पुरैना हैं, जो पहले गांव में पूरे दिन  गुच्चू पिलान पैसा खेलते थे। चार लौंडों  को दिन भर इकट्ठा कर, गांव के किसी खंडहर या  नए बन रहे मकान में जमावड़ा लगाकर  कैरम खेलना। मामा की शादी जल्दी हो गई थी, तो जीविका का  संकट भी सर पर आ खड़ा हुआ था, वैसे भी गांव में कोई खास काम तो था नहीं, खेती बाड़ी भी कम ही थी तो उसमें क्या गुजर बशर।  रहा सहा पुश्तैनी धंधा गांव में मौत होने पर दफनाने का काम लेकिन गांव में रोज कोई थोड़े ना खत्म होता जो धंधा चोखा चलता ये तो आंधी की आम की तरह था कमा लिए तो कमा लिए अब ऐसे कब तक चलता। जैसे तैसे इधर उधर से कुछ रूपियों का जुगाड करके मामा अरब देश कमाने निकल लिए। अब पूरे तीन साल बिलकुल बदले अंदाज में गांव में पधारे, पैसा आने पर मामी...

कुत्तो से सीखते पत्रकार

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कुत्तो से सीखते पत्रकार जिस किसी ने भी मीडिया का ककहरा पढा और सीखा है उसकी शुरूआत ही खबर बनाने को लेकर इसी आइडिया के साथ होती है कि   खबर वही बन सकती जो अदभुत घटनाओ से भरी हो, जैसे कुत्ते ने आदमी को काटा तो खबर नही है, बल्कि खबर तो तब बनेगी जब आदमी ने कुत्ते को काटा। क्लास में पहुचते ही मीडिया गुरू पहला सवाल अपने छात्रो से यही दागता है, कि खबर क्या है ? और उसके बाद बड़े शानदार ढंग से गुरू कुत्ते की इस कहानी को आगे बढाता है। छात्र भी शुरूआती दिनो में इस ज्ञान को ग्रहण कर के पत्रकार बनने की दिशा में आगे बढ़ जाते है , और इसी   थ्योरी को फॉलो करते करते   बेचारे कुछ स्टूडेंट तो ताउम्र उस आदमी को तलाश करते रहते, जिसने कुत्ते को काटा ताकि वह अपने मीडिया संस्थान के लिए इक अच्छी स्टोरी ला सके, और अपने बॉस को खुश कर सके। इस चाह मे कुछ तो बेचारे कुत्ते बन जाते है और अपने बॉस के सामने लार टपकाने और दुम हिलाने की आदत डाल लेते है। इसी होड़ में अपने साथियो सहित और लोगो को भी काटने लगते है। इसी दांवपेज में जब कटने काटने की आदत पड़ जाती है तो खबर का सवाल ही नही पैदा होता और दुम ह...

नए दौर के किस्से

लोग बताते हैं कि ! किसी जमाने में जब बड़के मामा ने गांव में अपना वर्चस्व स्थापित किया, तो अपने को चक्रवर्ती मनवाने के लिए खानदान के लोगों को सहभोज भी दिया। सहभोज बिल्कुल अनोखा था! खानदान के लोगों को चूंकि मामा को चक्रवर्ती होना तसलीम करना था, इसलिए इस सहभोज में पूरा खानदान आया और आगे से ये खानदान की इक परंपरा बन गई। साल में एक बार मामा सहभोज जरूर देते थे और हाँ कभी किसी वजह से अगर देर भी हो जाए तो रजवी शरीफ का  मुर्गीवाला सहभोज खानदान वालों को जरूर देते जिसमें पूरा खानदान जम कर मुर्गे का चहला वाला सालन ,चावल खूब पीते। इस सहभोज का अंदाज़ बिल्कुल निराला था, खानदान के सभी लोग एक साथ एक सफ में बैठ जाते थे ताकि पूरे खानदान को  अहसास ही न हो कि कौन छोटा है और कौन बड़ा! मामा के आंगन से लेकर  पांडू नाना के अंगूर के नीचे सभी छोटे बड़े एक साथ सफ में बैठ जाते, फिर मामा अपने  शाही अंदाज से बरामदे में तहमत चढ़ाकर, बनियान पहने हुए, टोंटी वाले लोटे से सालन भर कर खानदान के लोगों के प्लेट में उतारना शुरू कर देते। पूरा का पूरा खानदान सुबुड सुबुड कर  सालन चावल का गीला कौर खाना शुरू कर...

मोहर्रम आंदोलन से बेनकाब होता यजीदियत का चेहरा

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*मुहर्रम: एक परिचय।* दोस्तों, आप अपने आस पास हर वर्ष मोहर्रम में मजलिस होता ज़रूर देखते होंगे। मोहर्रम और चेहल्लुम में मजलिस, जुलूस, लोगों का मातम करना और रोना     यह परंपरा भारत में और उसके पड़ोसी देश में सैकड़ों वर्षो से देखने को मिल रही है। आप में से बहुत से लोग यह जानते होंगे कि मोहर्रम में ये सब  हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद  रखने के लिए मनाई जाने वाली परंपरा है।    फोटो_शोजब ज़ैदी हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के छोटे नाती थे और उनकी शहादत आज से कोई 14 सौ  वर्ष पूर्व, आतंक का प्रतिरोध करते हुए, अपने  71 साथियों व परिवार जनों के साथ,  जिन मे छः महीने का शिशु भी था,   इराक की मरूभूमि पर हुई थी। इसी  जगह आज कर्बला नगर आबाद है जहां उनकी समाधि स्थित है। आपके मन में अवश्य ही यह जानने की जिज्ञासा होती होगी कि आखिर इमाम हुसैन की शहादत किस कारण से हुई थी? उनका पैगाम क्या था? और यह आज इतने दिनों बाद भी विश्व भर में उनकी शहादत की याद इतने जोर शोर से क्यों मनाई जाती है? आखिर ह...

1400 साल पहले जब आतंकवाद का शिकार हुए पैगंबर मुहम्मद साहब के नवासे

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1400 साल पहले जब आतंकवाद का शिकार हुए पैगंबर मुहम्मद साहब के नवासे "अगर आपको ये लगता है कि दुनिया में आतंकवाद अभी शुरु हुआ है, या आतंकवाद का कोई धर्म होता है, तो आप गलत हैं। क्योंकि अगर ऐसा होता तो 1400 साल पहले खुद को मुसलमान कहने वाले कुछ आतंकवादी मुसलमानों के ही पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों का सर कलम ना करते मोहर्रम (Muharram), इस्लामिक कैलंडर का पहला महीना  हर साल मुहर्रम आते ही उस ज़ुल्म को यादकर इमाम हुसैन के मानने वाले उनका ग़म मनाते हैं। मुहर्रम के शुरुआती 10 दिनों में कर्बला (Karbala) के वाक्ये को याद किया जाता है, इमाम हुसैन के मकबरे की शक्ल में ताज़िए निकाले जाते हैं। उनके मानने वाले उनकी याद में रोते हैं और मातम करते हैं। कर्बला में क्यों किया गया इमाम हुसैन का क़त्ल? मगर सवाल ये है कि आखिर पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन को कर्बला में क़त्ल क्यों किया गया? क्यों खुद को मुसलमान कहने वाले लोगों ने उनके भरे घर को उजाड़ दिया? इसे जानना ज़रूरी है। मगर इसे जानने के लिए करीब 1400 साल पहले जाना होगा, जब मुहर्रम मही...

हिन्दी मात्रा का दोष और सही प्रयोग

हिन्दी लिखने वाले अक़्सर 'ई' और 'यी' में, 'ए' और 'ये' में और 'एँ' और 'यें' में जाने-अनजाने गड़बड़ करते हैं। कहाँ क्या इस्तेमाल होगा, इसका ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिए...। जिन शब्दों के अन्त में 'ई' आता है वे संज्ञाएँ होती हैं क्रियाएँ नहीं, जैसे: मिठाई, मलाई, सिंचाई, ढिठाई, बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, निराई, गुणाई, लुगाई, लगाई-बुझाई...। इसलिए 'तुमने मुझे पिक्चर दिखाई' में 'दिखाई' ग़लत है... इसकी जगह 'दिखायी' का प्रयोग किया जाना चाहिए...।  इसी तरह कई लोग 'नयी' को 'नई' लिखते हैं...।  'नई' ग़लत है, सही शब्द 'नयी' है...  मूल शब्द 'नया' है, उससे 'नयी' बनेगा...। क्या तुमने क्वेश्चन-पेपर से आंसरशीट मिलायी...? ('मिलाई' ग़लत है...।) आज उसने मेरी मम्मी से मिलने की इच्छा जतायी...। ('जताई' ग़लत है...।) उसने बर्थडे-गिफ़्ट के रूप में नयी साड़ी पायी...। ('पाई' ग़लत है...।) अब आइए 'ए' और 'ये' के प्रयोग पर...। बच्चों ने प्रतियोगिता के दौरान सुन्दर चित्र बनाय...

चिढ़

एक जमाने में जब गांव में मोबाइल जैसी नायाब चीज़ नही हुआ करती थी तो गांव में मनोरंजन के कई गवई साधन हुआ करते थे..  टाइम पास के लिए  कुछ खास लोगों को चिढाना भी हुआ करता था... इसी कड़ी में गांव मे आने वाला कोई फेरी  वाला होता था गांव मे बाल काटने वाला कोई नाई होता था... कोई फूफा जिनको किसी नाम या किसी विशेष चीज से चिढ होती थी..ऐसे ही गांव में एक नाई हकीकउल्लाह थे, जिनको करैले से चिढ़ थी ...वह करेैला खाते नहीं थे..ठीक हैं भईया ना खाव कैरला, कोई बात नही खानपान अपना एक निजी मामला हैं...! भईया, लेकिन वह जैसे ही करैला कहीं देखते नानी- महतारी की गाली देना शुरू कर देते ...हकीकउल्लाह की पत्नी आये दिन इस करैले के कारण उसके प्रकोप का शिकार होती रहती थी और गांव के लड़के थे, कि छेडखानी से बाज़ नही आते थे पूरा गांव उनको करैला ही कह कर पुकरता और फिर गाली सुनकर तृप्त होता... छोटे बड़े सब करैला मामा कह कर चिढ़ाते थे...गांव में एक प्रचलन और भी था  किसी शादी विवाह मे कोई ना कोई नाई जरूर आता था जज़मानी पूजने, नाई और उसका परिवार शादी विवाह वाले घर में पूरा काम सभांलते थे..बर्तन माजने से खा...

नापाक

 "यार मिर्जा सुबह सुबह फिर पानी रोड पर ही फेंक दिया" चाय की दूकान ना हो गई बिल्कुल नापदान... एक से एक लोग आपकी ढाबली पर खड़े होकर चाय पीते है ,लेकिन मियां, आप तो  बाज ही नहीं आते,आदत से मजबूर है, रोज गिलास धुल कर पानी रोड पर ही फेक देतें हैं आप.अमां जाओ, कौन सी रोड इनके अब्बा की हैं, थी तो सब अपनी ही जागीरदारी, "वैसे भी जो सरकारी है वो जमीन हमारी हैं"!!!अच्छा भई ठीक हैं तुम पुराने जगीरदार हो, पर रोज कोई गाड़ी वाला किसी शरीफजादे को छीप के चला जाता हैं..अमां जाओ कौन सा मुझे छीपता हैं मै तो हमेशा अपने काउंटर के पीछे ही रहता हूं................,............,,,,,,,,,,,,,,$$$$$$$$$!!!,,,,,,,,,,,,,,,,,                                                                       क्या हुआ मिर्जा जुमा नहीं पढने गये जुमे के तो बड़े पाबंद हो भले पंचवक्ता की पाबंदी ना हो...जल्दी करो नहीं तो जुमा छूट जायेगी...फिर खड़े खड...