कुत्तो से सीखते पत्रकार


कुत्तो से सीखते पत्रकार

जिस किसी ने भी मीडिया का ककहरा पढा और सीखा है उसकी शुरूआत ही खबर बनाने को लेकर इसी आइडिया के साथ होती है कि  खबर वही बन सकती जो अदभुत घटनाओ से भरी हो, जैसे कुत्ते ने आदमी को काटा तो खबर नही है, बल्कि खबर तो तब बनेगी जब आदमी ने कुत्ते को काटा। क्लास में पहुचते ही मीडिया गुरू पहला सवाल अपने छात्रो से यही दागता है, कि खबर क्या है? और उसके बाद बड़े शानदार ढंग से गुरू कुत्ते की इस कहानी को आगे बढाता है। छात्र भी शुरूआती दिनो में इस ज्ञान को ग्रहण कर के पत्रकार बनने की दिशा में आगे बढ़ जाते है, और इसी  थ्योरी को फॉलो करते करते  बेचारे कुछ स्टूडेंट तो ताउम्र उस आदमी को तलाश करते रहते, जिसने कुत्ते को काटा ताकि वह अपने मीडिया संस्थान के लिए इक अच्छी स्टोरी ला सके, और अपने बॉस को खुश कर सके। इस चाह मे कुछ तो बेचारे कुत्ते बन जाते है और अपने बॉस के सामने लार टपकाने और दुम हिलाने की आदत डाल लेते है। इसी होड़ में अपने साथियो सहित और लोगो को भी काटने लगते है। इसी दांवपेज में जब कटने काटने की आदत पड़ जाती है तो खबर का सवाल ही नही पैदा होता और दुम हिलाने की इस कला से बॉस इतना खुश रहता है कि उसे खबर की खबर ही नही रहती।

कुत्ते आदमी और खबर का यह रिश्ता इस बार उलट गया और प्रदेश के सीतापुर जिसे से अचानक वही खबर आने लगी जिसे मीडिया में खबर  ना बनाने की दलील दी जाती यानि कुत्ते लगातार आदमियो को काट रहें है और पत्रकार उसको खबर बना कर अपने ही पढें को गलत साबित कर रहे है, लेकिन कुत्ते केवल यहीं खबर नही बन रहे पिछले कुछ दिनो से अचानक कुत्तो के खबरी बाजार में काफी उछाल आया है, मीडिया इनको बड़े बेतकल्लुफ अंदाज में भुना और सुना रहा है, चाहे वह कराची के सड़को पर गलियो के अवारा बेकार कुत्तो के मारे जाने की हो या कर्नाटक चुनावो में कुत्तो से सीखने की।

 मीडिया  कुत्तो से ही सीख कर आदमियत का नायाब नमूना पेश कर रहा है। कुत्तो पर विश्लेषण कराची से कर्नाटक तक हो रहा है और नई नस्लो से सीख लेने की सलाह भी। अच्छा है! कुत्तो से भी कुछ सीखा जा रहा है हालांकि पत्रकार तो कुत्ते से ही सीख कर बना जाता है।

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