तो क्या ईरान से युद्ध की स्थिति में संभल पायेगा अमेरिका!
तो क्या ईरान से युद्ध की स्थिति में संभल पायेगा अमेरिका!
विगत कई दिनो से लगातार अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ईरान और अमेरिका के तनातनी की खबरे आ रही जहाँ अमेरिका लगातार ईरान पर कूटनीतिक तौर पर हमलावर बना हुआ है और आये दिन अंतराष्ट्रीय स्तर पर नये प्रतिबंध लगा रहा हैं. यही नही अमेरिकी प्रशासन ने कुछ दिन पहले ईरान की सेना को आतंकवादी सेना भी घोषित करने का प्रयास किया. वैसे अमेरिका और ईरान के बीच यह कोई नया मामला नहीं है, पश्चिमी एशिया में सबसे पहले अमेरिका को संरक्षण 70 के दशक में ईरान के शाह पहलवी के जमाने में मिला जब अमेरिका अपने आर्थिक मनोकामना पूरी करने के लिए प्रकृतिक गैस और खनिज तेल के भंडार को तलाश रहा था. उसी दौरान सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के चक्कर में ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति के कारण अमेरिका को मुंह की खानी पड़ी और ईरान से उसके राजनैतिक संबंध समाप्त हो गये. इसके बाद अमेरिका ने ईरान के पडोसी इराक से राजनीतिक संबंध स्थापित किये. इन्ही घटनाक्रमों के बीच ईरान इराक युद्ध भी शुरू हो गया जिसमें ईरान को भारी नुकसान उठाना पङा. 1991 में शीत युद्ध के बाद बदलती कूटनीतिक दशाओं में खाड़ी युद्ध की शुरुआत हुई और अमेरिका की गठबंधन सेनाओं ने इराक पर हमला करके कुवैत को इराक से मुक्त कराया..
उसके बाद लगातार अमेरिका पश्चिम एशिया के मामले में सीधे दखलंदाजी करने लगा और खाड़ी युद्ध प्रथम के बाद सऊदी और संयुक्त अरब के देशों के साथ अमेरिका के सैन्य संबंध स्थापित हुए. कुछ लोगो को मानना है कि पश्चिम एशिया में अपने ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए अमेरिका लगातार सऊदी और संयुक्त अरब अमीरात के साथ उनके मुखालिफ देशो के शासकों को सत्ता से बेदखल करने में सैन्य हस्तक्षेप कर रहा हैं..
साथ ही साथ कट्टरपंथी विचार धारा के नान एक्टर गुटों को भी मदद दे रहा है. इसी क्रम में अमेरिका ने इराक के सद्दाम हुसैन सरकार को अपदस्थ करने के बाद लीबिया के गद्दाफी सरकार का भी खात्मा किया. जिससे अमेरिका का मनोबल बढ गया और अमेरिका ने सऊदी के साथ मिल कर सीरिया की सरकार को भी अपदस्थ करने का प्रयास किया लेकिन ईरान ने खुल कर सीरिया का साथ दिया और विद्रोहियों को सीरिया से समयपूर्व हराने में सीरिया का अंतराष्ट्रीय स्तर पर साथ दिया. पश्चिम एशिया में ईरान के बढते प्रभाव से अमेरिका को काफी परेशानी हो रही है क्योकि इससे दो बड़े सहयोगी सऊदी और इजराइल को भी ईरान के बढ़ते प्रभाव से खतरा है. उधर अमेरिका मे लगातार करदाताओं के पैसो के दुरुपयोग को लेकर वहां के नागरिक सरकार का विरोध कर रहे हैं. इस बार ट्रंप प्रशासन के लिए गये फैसलों से वहां थे लोग संतुष्ट नहीं है.
सीरिया में हुए सैन्य कार्यवाही से मनमाफिक परिणाम ना मिलने और इराक में अपदस्थ सद्दाम हुसैन की सरकार के बाद बनी नई सरकार भी ईरान की हिमायती सरकारें है जिससे अमेरिका ईरान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर करना चाहता है जिससे पश्चिम एशिया मे ईरान के प्रभाव को कम किया जा सके. इसी को लेकर अमेरिका आये दिन ईरान के तेल निर्यातकों को ईरान से तेल ना लेने का दबाव बना रहा लेकिन चीन जो ईरान का सबसे बड़ा तेल आयातक है, अमेरिका उसके साथ पहले से ही ट्रेड वार छेडे है.
दूसरा आयतक देश यानी की भारत में अभी चुनाव चल रहे इससे नई
सरकार बनने तक कुछ कह पाना ठीक नहीं है. उधर ट्रंप प्रशासन के फैसलों से आम अमेरिकी को ईरान के साथ संबंधों पर प्रतिबंध और सैन्य कार्रवाई से भी विरोध है ऐसा ना हो कि अमेरिका फिर एक बार इराक और सीरिया की तरह अपने मनसूबे में विफल हो जाए तो इस बार अमेरिका का संभलना मुश्किल होगा.
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