Posts

Showing posts from January, 2025

जन्नत

Image
जन्नत जब से पुरैना  मामा खाड़ी देश से लौटे हैं अचानक ही उनके मिजाज़  बदल गए। पंचगाना नमाज़, सर पर टोपी, हर जुम्मे को खास तौर पर अतारूमी  के साथ कंधे पर लाल चेक का गमछा। मौलवी साहेब के साथ उठना बैठना, तबलीग की बाते फतवा के साथ फितना सब बातों पर बड़ी "गौर ओ फिक्र"।  यकीन ही नहीं होता, वहीं मामा पुरैना हैं, जो पहले गांव में पूरे दिन  गुच्चू पिलान पैसा खेलते थे। चार लौंडों  को दिन भर इकट्ठा कर, गांव के किसी खंडहर या  नए बन रहे मकान में जमावड़ा लगाकर  कैरम खेलना। मामा की शादी जल्दी हो गई थी, तो जीविका का  संकट भी सर पर आ खड़ा हुआ था, वैसे भी गांव में कोई खास काम तो था नहीं, खेती बाड़ी भी कम ही थी तो उसमें क्या गुजर बशर।  रहा सहा पुश्तैनी धंधा गांव में मौत होने पर दफनाने का काम लेकिन गांव में रोज कोई थोड़े ना खत्म होता जो धंधा चोखा चलता ये तो आंधी की आम की तरह था कमा लिए तो कमा लिए अब ऐसे कब तक चलता। जैसे तैसे इधर उधर से कुछ रूपियों का जुगाड करके मामा अरब देश कमाने निकल लिए। अब पूरे तीन साल बिलकुल बदले अंदाज में गांव में पधारे, पैसा आने पर मामी...

कुत्तो से सीखते पत्रकार

Image
कुत्तो से सीखते पत्रकार जिस किसी ने भी मीडिया का ककहरा पढा और सीखा है उसकी शुरूआत ही खबर बनाने को लेकर इसी आइडिया के साथ होती है कि   खबर वही बन सकती जो अदभुत घटनाओ से भरी हो, जैसे कुत्ते ने आदमी को काटा तो खबर नही है, बल्कि खबर तो तब बनेगी जब आदमी ने कुत्ते को काटा। क्लास में पहुचते ही मीडिया गुरू पहला सवाल अपने छात्रो से यही दागता है, कि खबर क्या है ? और उसके बाद बड़े शानदार ढंग से गुरू कुत्ते की इस कहानी को आगे बढाता है। छात्र भी शुरूआती दिनो में इस ज्ञान को ग्रहण कर के पत्रकार बनने की दिशा में आगे बढ़ जाते है , और इसी   थ्योरी को फॉलो करते करते   बेचारे कुछ स्टूडेंट तो ताउम्र उस आदमी को तलाश करते रहते, जिसने कुत्ते को काटा ताकि वह अपने मीडिया संस्थान के लिए इक अच्छी स्टोरी ला सके, और अपने बॉस को खुश कर सके। इस चाह मे कुछ तो बेचारे कुत्ते बन जाते है और अपने बॉस के सामने लार टपकाने और दुम हिलाने की आदत डाल लेते है। इसी होड़ में अपने साथियो सहित और लोगो को भी काटने लगते है। इसी दांवपेज में जब कटने काटने की आदत पड़ जाती है तो खबर का सवाल ही नही पैदा होता और दुम ह...