जन्नत

जन्नत जब से पुरैना मामा खाड़ी देश से लौटे हैं अचानक ही उनके मिजाज़ बदल गए। पंचगाना नमाज़, सर पर टोपी, हर जुम्मे को खास तौर पर अतारूमी के साथ कंधे पर लाल चेक का गमछा। मौलवी साहेब के साथ उठना बैठना, तबलीग की बाते फतवा के साथ फितना सब बातों पर बड़ी "गौर ओ फिक्र"। यकीन ही नहीं होता, वहीं मामा पुरैना हैं, जो पहले गांव में पूरे दिन गुच्चू पिलान पैसा खेलते थे। चार लौंडों को दिन भर इकट्ठा कर, गांव के किसी खंडहर या नए बन रहे मकान में जमावड़ा लगाकर कैरम खेलना। मामा की शादी जल्दी हो गई थी, तो जीविका का संकट भी सर पर आ खड़ा हुआ था, वैसे भी गांव में कोई खास काम तो था नहीं, खेती बाड़ी भी कम ही थी तो उसमें क्या गुजर बशर। रहा सहा पुश्तैनी धंधा गांव में मौत होने पर दफनाने का काम लेकिन गांव में रोज कोई थोड़े ना खत्म होता जो धंधा चोखा चलता ये तो आंधी की आम की तरह था कमा लिए तो कमा लिए अब ऐसे कब तक चलता। जैसे तैसे इधर उधर से कुछ रूपियों का जुगाड करके मामा अरब देश कमाने निकल लिए। अब पूरे तीन साल बिलकुल बदले अंदाज में गांव में पधारे, पैसा आने पर मामी...