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Showing posts from February, 2021

नापाक

 "यार मिर्जा सुबह सुबह फिर पानी रोड पर ही फेंक दिया" चाय की दूकान ना हो गई बिल्कुल नापदान... एक से एक लोग आपकी ढाबली पर खड़े होकर चाय पीते है ,लेकिन मियां, आप तो  बाज ही नहीं आते,आदत से मजबूर है, रोज गिलास धुल कर पानी रोड पर ही फेक देतें हैं आप.अमां जाओ, कौन सी रोड इनके अब्बा की हैं, थी तो सब अपनी ही जागीरदारी, "वैसे भी जो सरकारी है वो जमीन हमारी हैं"!!!अच्छा भई ठीक हैं तुम पुराने जगीरदार हो, पर रोज कोई गाड़ी वाला किसी शरीफजादे को छीप के चला जाता हैं..अमां जाओ कौन सा मुझे छीपता हैं मै तो हमेशा अपने काउंटर के पीछे ही रहता हूं................,............,,,,,,,,,,,,,,$$$$$$$$$!!!,,,,,,,,,,,,,,,,,                                                                       क्या हुआ मिर्जा जुमा नहीं पढने गये जुमे के तो बड़े पाबंद हो भले पंचवक्ता की पाबंदी ना हो...जल्दी करो नहीं तो जुमा छूट जायेगी...फिर खड़े खड...

शर्मिंदा तो होना ही था

आपको तकलीफ तो नहीं हुई.ना न् हिचकते हुए मैने कहा..ठीक है कोई बात नहीं मुझे लगा मेरे जूते आपके पैरो पर पड़ गये कहते हुए बुजुर्ग  चचा मेरी सीट के पास  गैलरी मे लोेहे की राड को पकड़ कर ठसाठस भरी बस मे जैसे तैसे खडे़े हो गये, और मैं..................................... मैं अपनी सीट पर बैठा बैठा सोचने लगा, अभी थोड़ी देर पहले जब यह बुजुर्ग सज्जन  बस की गेट से दाखिल हो रहे थे,, तो मैने क्या सोचा इनको देख कर.......चुगनी सी दाढी दरमिान कद चुस्त कु्र्ता पैजामा जैसे किसी फिल्मी किरदार के किसी मशूका का खड्डूस बाप....और तुर्रा यह कि सीधे मेरी सीट की ओर ही आ गयें इस ठसाठस भरी बस में..तगड़ी वाली खीझ  हुई थी मुझे इनकी शख्सियत पर लेकिन.... जैसे ही नजदीक आये और इतने मीठे लहजे में मेरी तकलीफ को जानने की कोशिश की...तो मै लजवाब हो गया जबकि मै भी बेपरवाही में भरी बस की गैलरी में जबरीया अपना पैर फैलायें था. तो शर्मिंदा तो होना ही था.