मोहर्रम आंदोलन से बेनकाब होता यजीदियत का चेहरा

*मुहर्रम: एक परिचय।* दोस्तों, आप अपने आस पास हर वर्ष मोहर्रम में मजलिस होता ज़रूर देखते होंगे। मोहर्रम और चेहल्लुम में मजलिस, जुलूस, लोगों का मातम करना और रोना यह परंपरा भारत में और उसके पड़ोसी देश में सैकड़ों वर्षो से देखने को मिल रही है। आप में से बहुत से लोग यह जानते होंगे कि मोहर्रम में ये सब हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद रखने के लिए मनाई जाने वाली परंपरा है। फोटो_शोजब ज़ैदी हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के छोटे नाती थे और उनकी शहादत आज से कोई 14 सौ वर्ष पूर्व, आतंक का प्रतिरोध करते हुए, अपने 71 साथियों व परिवार जनों के साथ, जिन मे छः महीने का शिशु भी था, इराक की मरूभूमि पर हुई थी। इसी जगह आज कर्बला नगर आबाद है जहां उनकी समाधि स्थित है। आपके मन में अवश्य ही यह जानने की जिज्ञासा होती होगी कि आखिर इमाम हुसैन की शहादत किस कारण से हुई थी? उनका पैगाम क्या था? और यह आज इतने दिनों बाद भी विश्व भर में उनकी शहादत की याद इतने जोर शोर से क्यों मनाई जाती है? आखिर ह...