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Showing posts from May, 2009
यह गलिओं के आवारा बेकार कुत्ते की बख्शा गया जिनको ज़ौकै कदयीए ज़माने की फिटकार सरमाया इनका जहाँभर की दुद्कार इनकी कमाई ना आराम शब् को ना राहत सबेरा गलाज़त में घर नालियों में बसेरा जो बिखरे तो एक दूसरे से लड़ा दो ज़रा एक रोटी के टुकडा दिखा दोये yeh हर एक की ठोकर खाने वाले यह फाको से उकता कर मर जाने वाले यह मजलूम मखलूम गर सर उठाएं to इ ंसान सब सरकशी भूल जाये ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें यह आकाओं की हड्डी को तक चबा lein लें कोई इनको एहसास ए जिल्लत दिला दे कोई इनकी सोई हुई दुम को हिला दे .